दिल्ली में प्रदूषण बढ़ रहा है सोशल मीडिया पर लोगों को चिंता हो रही है ।
यह वास्तव में बढ़िया मजाक है ।
हम कितने भोले बनते हैं कमाल है ।
प्रकृति का नियम है कि जैसा करोगे वैसा ही परिणाम मिलेगा
क्या हमने अब तक यह भी नहीं सीखा?
डिग्रियाँ तो बहुत हैं हमारे पास??
व्यवहार बिल्कुल नहीं है?
दिल्ली जैसे बड़े शहर के लोगों का प्रकृति से कोई वास्ता ही नहीं है तो उन्हें कैसे पर्यावरण की जरूरत महसूस हो गई जब पूरा दिन रात आप सब लोग मशीनों में रहते हैं आपको गाँवों से बदबू आती है आपको जंगल अच्छे नहीं लगते आपको खेतों में काम करने वाले किसानों से दिक्कत है आप किसानों को मूर्ख मानते हैं तो आपको मुफ्त में मिलने वाली हवा ही क्यों चाहिए?
जब आप कार,ए सी, गैसा सब कुछ पैसे से ले सकते हैं तो हवा भी लीजिए न????
प्रकृति के साथ रहने वाले लोग आपको गंवार लगते हैं तो आप शुद्ध वायु किससे माँगते हैं?
जब आप रहते ही ऐसी जगह पर हैं जहाँ आप केवल कार्बनडाई आक्साइड पैदा करते हैं आपका लेश मात्र भी सहयोग नहीं है ऑक्सीजन के लिए तो आप किस हक से माँगते हैं?
आप जब केवल प्रकृति को नष्ट करने के कार्य करते हैं तो आप किस हक से शुद्ध वायु माँगते हैं और दोष किसान को देते हैं जो आपके पेट भरने के लिए अनाज पैदा करता है और वो भी आप उसको उसकी मेहनत का पूरा दाम नहीं देते जबकि कंपनियों को आप हर चीज का पूरा दाम देते हैं ??
और वह कंपनी आपको खाद्य पदार्थों में मिलावट करके भी दे तो आपको उस कंपनी पर भरोसा है लेकिन किसान पर नहीं होता ??
हमें अपने व्यवहार में बदलाव की जरूरत है न कि दूसरों से शिकायत की ।
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