सोमवार, 31 अक्तूबर 2022

घूमती रहती है अपने इश्क में वो हर घड़ी

ग़ज़ल 

वो तो कहते हैं,ये दरवाजा कभी खुलता नहीं।

और सच ये है, कि उसने खोल कर देखा नहीं।।


घूमती रहती है अपने इश्क में,वो हर घड़ी

इस ज़मीं की आदतें सूरज कभी समझा नहीं।


आँख से आँसू का बहना है जरूरी दोस्तों,

जो कभी बहता नहीं,कहते उसे दरिया नहीं ।


हर ग़ज़ल कविता में उसकी बात गहरी होती है,

उसको ये लगता है, मैं उसको कभी लिखता नहीं।


बोलता तो है वो अब, मैं इसलिए ख़ामोश हूं,

जब तलक मैं बोलता हूं,वो मेरी सुनता नहीं।


ज़िन्दगी भर जैसा चलता है,सफर चलता रहे,

सब मुसाफिर मारे जाते हैं,सफर मरता नहीं।



©®सूबे सिंह सुजान, कुरूक्षेत्र हरियाणा


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें