दुख: में पुरुष ख़ामोश हो जाता है और स्त्री ज़ोर से रो पड़ती है।
दुख को कम करने के लिए रोना जरुरी है इसलिए स्त्री रोती है और यह समझदारी है।
पुरुष की प्रकृति कठोर होती है उसे सहने के लिए बनाया गया है इसलिए वह ख़ुद पर सहता है वह दुख को अपने पर झेलता है यही उसकी प्रकृति है हृदय तो पुरुष का भी बहुत कोमल होता है लेकिन वह समझता देर से है। बहुत बार पुरुष भी बहुत रोना चाहता है लेकिन अपनी प्राकृतिक, सामाजिक व्यवस्था के कारण रो नहीं सकता।
प्रकृति ने स्त्री को बहुत अधिक नर्म,कोमल,हृदय से और भी कोमल बनाया है वह पल में प्रलय है
वह जन्मदात्री है और बीज कोमल मिट्टी,नमी, समुचित आकाश, वायु, प्रकाश के संतुलन में पौधा बनता है।
सूबे सिंह सुजान
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