किसी भी रूप में स्वयं को देखा जा सकता है।
यदि आप अपने बीते दिनोंं को देखना चाहते हैं तो बहुत आराम से दिखाई देगा, यदि आप देखेंगे तो।
आपको जो कुछ भी दिखाई दे रहा है कहीं भी नज़र घुमाओ, जो कुछ भी दिखाई दे रहा है वह तुम्हारी तरह ही है या था या होगा।
पृथ्वी पर उपस्थित हर कण बिल्कुल सटीक आप की तरह है
आप किसी मनुष्य,जानवर या वनस्पति किसी में भी देख सकते हैं वह सब आपकी तरह हू ब हू है। लेकिन देखने के लिए आपको स्वयं को एक ध्यान में रखना होगा एक प्रकृतिवादी बनकर, क्योंकि जैसी प्रकृति है वैसा बनना होगा वास्तव में आप ऐसे ही हैं लेकिन मनुष्य की निर्मित भौतिक वस्तुओं पर हमें गर्व की अनुभूति होती है जिसे हम छोड़ नहीं पाते, जबकि हम यह भूल जाते हैं हम भी उसी प्रक्रिया में है जिसमें सब उपस्थित वस्तुएं हैं।
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