अब कहानी, ख़बर सी लगती है
बच्चों को एक डर सी लगती है।
यूँ खुशी भी मिली है हमको ,मगर,
दर्द की भी नहर सी लगती है।
काम दर काम गर, करेंगे हम,
ज़िन्दगी फिर सफ़र सी लगती है।
क्या नया दौर आ गया यारो,
बस्ती बस्ती नगर सी लगती है।
उनमें भी भावनाएं बाक़ी हैं,
झोंपड़ी जिसको घर सी लगती है।
जिसका दीवाना मैं रहा बरसों,
वो मुझे बेख़बर सी लगती है।
बद्दुआ,जितनी उसको देता हूँ,
उसको मेरी उमर सी लगती है।
सूबे सिंह सुजान
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