हिन्दी भाषा के साथ भेदभाव क्यों? न्यायालय ही न्याय नहीं करेंगे तो कौन न्याय करेगा?
। मातृ भाषा दिवस मनाने के आदेश विदेशी भाषा में क्यों? 1995 में जब मैं दसवीं कक्षा में पढ़ रहा था तो नेहरू युवा केंद्र की सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेता था तो एक बार मुझे हिन्दी दिवस मनाने का पत्र आया जो कि अंग्रेजी में था मैंने उसके प्रत्युतर में लिखा कि आप हमें हिन्दी प्रयोग को प्रोत्साहित करते हैं और पत्र अंग्रेजी में लिखते हैं ? क्या यह उचित है उन्होंने मुझे बुलाया और आधिकारिक रोब में खूब डराया और युवा केंद्र से बहिष्कार कर दिया । यह वास्तविकता है हमारे देश के अधिकारियों की , यह अंग्रेजी शिक्षा की देन है इससे हमें पता चलता है कि कोई विचारधारा किसी संस्कृति का कितना नुकसान करती है और उसका आमूल चूल परिवर्तन कर देती है जैसे हम परिवार में बच्चों की रक्षा करते हैं हमें अपनी संस्कृति की भी ऐसे ही रक्षा करनी चाहिए । लेकिन हमारे देश के नेतृत्व करने वाले इस विचार को समझने में असमर्थ हैं यह मूल अधिकारों का हनन है जब विदेशी लोग अपनी संस्कृति,सोच का अधिक से अधिक प्रचार प्रसार कर सकते हैं तो हमें अपने मूल स्वतंत्र विचारों का प्रयोग करने में ग्लानि क्यों?और शासन व प्रशासन को आपत्ति क्यों? आप जिस जनता को कोई आदेश दे रहे हैं जिन लोगों के लिए पत्र जारी कर रहे हैं वे जिस भाषा को समझते हैं ।आप उसमें आदेश न देकर उस जनता,उन लोगों को जानबूझकर शिक्षित नहीं करना चाहते । 👉 👉सरकार व अधिकारियों से भयंकर तो न्यायालय के आदेश हैं जो आम नागरिक को जो शिक्षित नहीं है उसे उसकी भाषा में न बात कहने का हक देता है न ही कभी कोई भी पत्र,आदेश कभी उसकी भाषा में लिखता है ? अर्थात न्यायालय ही आम नागरिक के अधिकारों का हनन करता आया है । ✍🏻🙏✍🏻 हरियाणा सरकार, भारत सरकार से मेरा निवेदन है कि जो नागरिक जिस क्षेत्र, जिस भाषा को समझता है न्यायालय के सभी आदेश,सरकारी विभागों के आदेश उसकी भाषा में ही उस तक पहुंचने चाहिए । निवेदक :- सूबे सिंह सुजान शिक्षक व कवि
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