मंगलवार, 22 अक्तूबर 2019
हार, जीत पर अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना सीखना चाहिए ।
हारने वालों को कभी निराश नहीं होना चाहिए और जीतने वालों को खुश तो होना चाहिए लेकिन खुशी में कभी किसी का अपमान नहीं करना चाहिए ।
हार ,जीत जीवन के प्रत्येक किस्से में नुमायाँ होती है वो चाहे कोई भी खेल हो या प्रतियोगिता हो या चुनाव हो या व्यक्ति का निजी जीवन में निर्णय लेना, किसी भी रास्ते का चयन करना या भावनाओं के स्तर पर प्रेम की सफलता, विफलता पर हार्दिक स्तर पर घात, प्रतिघात लगना या लगाना यह खेल जीवन का हिस्सा होते हैं अर्थात आप कह सकते हैं जीवन इन्हीं से मिल कर बना है जीवन जीने के तरीके हैं जीवन को जीने में व्यस्त रखने के तौर तरीके हैं और इनसे हम कभी दूर नहीं होते इनसे दूर कुछ संत लोग हो सकते हैं वे भी तब, जब वे सृष्टि की वास्तविकता को समझ लेते हैं यह स्थिति गहन दार्शनिक होती है जो संत लोग यहाँ तक की वैचारिक, बौद्धिक स्तर पर पहुँच पाते हैं वे जीवन निर्माण की प्रक्रिया को जान चुके होते हैं अर्थात जिस प्रकार कोई वैज्ञानिक किसी भी पदार्थ की खोज करता है और उसके निर्माण के सभी तत्वों,प्रक्रिया व गुण, अवगुण को समझ चुका होता है वह उसका ज्ञानी, ज्ञाता हो जाता है उस स्थिति में वह उस पदार्थ को जान चुका होता है तो वह उसके मोह ,लोभ,लालच,प्रेम,निराशा जैसी भावनाओं से ऊपर उठ जाता है उसी प्रकार संत लोग जीवन के ज्ञाता हो जाते हैं वे जीवन निर्माण की प्रक्रिया में आनंदित होकर व्यर्थ की वस्तुओं का त्याग कर देते हैं ।
खैर ।
हमें जीवन में हारने पर अपनी भावनाओं पर नियंत्रण करना व जीतने पर भी अपनी भावनाओं पर नियंत्रण करना सीखने का निरंतर प्रयास करना होता है यह सबसे नाजुक सीखने की प्रक्रिया होती है जीवन सीखने से प्रारंभ होकर अंत समय तक सीखने की प्रक्रिया ही तो होती है यह सीखने की प्रक्रिया केवल मनुष्यों में ही नहीं होती अपितु हर जीव में होती है सभी जीवों में तो होती ही है साथ ही साथ सजीव, निर्जीव पदार्थों में भी होती है सभी पहाड़ों,नदी नालों,ईंट,पत्थर,रेत,खनिजों आदि में भी सीखने की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है सीखने की प्रक्रिया जीवों व निर्जीव में एक समानता पैदा करती है ।
मनुष्यों को अन्य प्राणियों की अपेक्षा अधिक बुद्धिजीवी व संवेदनशील कहा गया है यह किसी अन्य जीव ने तो कहा नहीं है मनुष्य ने ही कहा है तो यह एक पक्षीय निर्णय भी कहा जा सकता है मनुष्य अपने स्वार्थों का प्रयोग करने के लिए पृथ्वी के सभी जीवों के हिस्सों को खा जाता है जबकि प्रकृति ने सभी जीवों को एक समान अधिकार प्रदान किए हैं ।
हमारी संवेदनशीलता हमें अन्य प्राणियों के प्रति दुर्व्यवहार न करने के लिये प्रदान की गई है जिसे समझने के लिए हर मनुष्य की प्रकृति भिन्न भिन्न होती है यही संवेदनशीलता हमें बुद्धिजीवी का स्तर प्रदान करती है बौद्धिक स्तर पर मनुष्यों द्वारा चतुरता को अपना कर धोखा देना,दूसरों को लूटना एक प्रकार का बौद्धिक स्तर कहा जाता है लेकिन यह मनुष्यता की कमजोरी है ।
हमें सीखने की प्रक्रिया में हार पर हार्दिक स्तर पर भावनाओं पर नियंत्रण रखना व जीतने पर भी अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना सीखना चाहिए यह वर्तमान समय में बहुत अधिक जिम्मेदारी से सीखने,सीखाने की प्रक्रिया है जिस पर बल दिया जाना जरूरी होता जा रहा है चुनावी मौसमों में हमें यह खासतौर पर ध्यान देना चाहिए कि किसी जीतने वाले लोगों को कभी हारने वालों को जानबूझकर इंगित करके अपमानजनक शब्द, व्यवहार नहीं करना चाहिए यदि ऐसा व्यवहार किया जाता है तो यह व्यवहार वैमनस्य को पैदा करता है जो जीवन हानि तक चला जाता है ।
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