सोमवार, 22 अगस्त 2011

गजल

जब गरीबी सताने लगी
भीड पत्थर उठाने लगी
भूख रोटी से मिटती नहीं
भूख पत्थर भी खाने लगी
बात जितनी छुपाने लगा
सामने उतनी आने लगी
दिल में क्या-क्या छुपा सकता था
आँखें सब कुछ बताने लगी
जब उसे प्यार मुझसे हुआ
देखकर मुस्कुराने लगी
हाय कैसी जुदाई की रात
चाँदनी कहर ढाने लगी
मौत आई है नजदीक तो
साँस रूक-रूक के आने लगी
आपका प्यार पाकर सुजान
जिंदगी रास आने लगी

     सूबे सिहं सुजान

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