मंज़िलें पा ली गई, तो रास्ता बाकी रहे
आप बेशक जाइये लेकिन पता बाकी रहे।
उम्र भर जिसके बहाने आप हमको याद आएं,
ज़िन्दगी में प्यार की ऐसी ख़ता बाकी रहे।
दोस्त हमने भी बनाए सैंकड़ों थे, कुछ मगर,
मेरे दिल से हो न पाये, लापता, बाकी रहे।
आप चाहें मुझसे करना दुश्मनी तो कीजिए,
सिर्फ़ दिल में प्रेम का इक देवता बाकी रहे।
दोस्ती ख़ामोशियों से कीजिए बेशक "सुजान"
पेड़-पौधों, रास्तों से वास्ता बाकी रहे।
सूबे सिंह सुजान
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें