my poetry मेरी गजलें और कवितायें
लगाना हाज़िरी हर रोज़ अपनी भूल जाता हूं।
बहुत मसरूफ़ होकर याद उसकी भूल जाता हूं।
समझ बैठा, महब्बत में तुम्हारी, कुछ महब्बत है,
ज़माने ने,मगर कर ली तरक्की भूल जाता हूं।
सूबे सिंह सुजान
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