गुरुवार, 7 अप्रैल 2022

कहानी और कविता

अब कहानी और कविता हो रही हैं छोटी, दर्द, तन्हाई, ज़ियादा से ज़ियादा लम्बी। वनस्पति घटने लगी, रास्ते कितने खुश हैं, वक्त, हमने भी तुम्हारी नई दुनिया देखी।

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत मार्मिक विचार सुजान जी।सच में वक्त का ये दौर बड़ा भयावह है।क्या खूब लिखा आपने------
    वक्त, हमने भी तुम्हारी नई दुनिया देखी///////
    👌👌👌👌🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  2. जी हां।
    रेणु जी आपका बहुत बहुत आभार।

    जवाब देंहटाएं