बुधवार, 23 जून 2021

मां का मरना और सड़क का बनना

 मां 14 जून 2021 को दोपहर 2 बजे अंतिम सांस लेकर दुनिया से विदा हो गई।

मां के जाने पर जो दुःख सबको होता है वह मुझे भी है लेकिन एक दुःख और है जो जाने अनजाने मेरे मन में बैठा है। वह दुःख है मेरे घर को दुनिया से जोड़ने वाली सड़क का पूरा न बनना, 


मुझे दुःख है कि मां के मरने से पहले मेरे घर तक पक्की सड़क न बन सकी!!!!!


मां  मरने का इंतज़ार कर रही थी और सड़क बनने का इंतजार कर रही थी।

मैं सोचता था कि मां के मरने से पहले सड़क पक्की बन जाए तो , 

मातम में जो लोग शहर से मेरे पास आएंगे,उनको कोई दिक्कत न हो,

कच्चे रास्ते का उनको अनुभव नहीं है वो बेचारे परेशान होंगे।


सड़क बनने का टैंडर मार्च 2019 में छूट चुका था और मैं सोचता रहता था कि सड़क बने तो ही मां मरना,तब तक मत मरना और मां से यह कहता तो मां कहती मैं तो परमात्मा से प्रार्थना करती हूं तुम्हारी सड़क कल बन जाए और मैं मरूं, बहुत दुःखी हूं। मुझे उठा ले परमात्मा, लेकिन मां को  दो साल तीन महीने और जिंदा रखने के लिए सड़क निर्माण विभाग,पंच, सरपंच, ज़िला परिषद,व सरकार का बहुत बहुत धन्यवाद।


सड़क जितना लेट होगी मां उतना और जीती रहेगी।

लेकिन आखिरकार मां हार गई और सड़क निर्माण विभाग व सभी सरकारी नुमाइंदे जीत गए।


मेरी अजीबोगरीब इच्छा अभी हाल फिलहाल पूरी नहीं हुई है लेकिन इस इच्छा पर पत्थर पड़ चुके हैं और जल्द पूरी होने की आस है।

वैसे पत्थर पिछले दो साल से पड़े हैं

लेकिन शायद इन पत्थरों का वज़न कुछ कम था जो मां चल बसी।


अधूरे रास्तों की अपनी इच्छाएं होती हैं और मां की अलग इच्छा,कि मुझे जल्द मरना है और मेरी अलग इच्छा कि मां के मरने से पहले सड़क पक्की हो जाए।


मेरी ही अजीबोगरीब इच्छा नहीं थी,

लोगों की भी अजीबोगरीब इच्छा थी,

साधारणतया लोग सड़क जल्द बनने की इच्छा रखते हैं लेकिन यहां मामला उल्ट था ज्यादा लोग सड़क के न बनने पर खुश थे वे चाहते थे कि यह सड़क न बने।


मां के मरने के बाद बहुत लोग घर पर शोक व्यक्त करने आए, लेकिन एक बात कमाल रही, करोना नहीं आया, वह जा चुका था, करोना मां के लिए रास्ते साफ़ कर रहा था वह बहुत शांत हो गया था, उसकी शांति सबको चैन दे रही थी।


कुछ लोग हमेशा काम करते रहते हैं वे शोक व्यक्त करने नहीं आ सके, शायद उनके काम ही उनकी इस राह में रोड़ा बने होंगे, क्योंकि आते किस मुंह से ग़ालिब....?

लेकिन एक नया रिसर्च उन्होंने इस बीच कर दिया कि मातम पर बैठे हुए भी मुझे ज़िला कार्यालय में बुलाकर।


अब मैं सड़क से सवाल किया करूंगा कि तू मेरी मां के मरने के बहुत बाद आयी है? शोक व्यक्त करने भी नहीं आ सकी,यह उलाहना तुझ पर उम्र भर रहेगा।


सूबे सिंह सुजान,

 कुरूक्षेत्र, 

 हरियाणा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें