हर जगह परदे हैं और यह परदे बेहद आकर्षक, और जरूरी हैं
फिल्म भी परदे पर ही चलती है यह परदे ही फिल्मों की कहानियों में भी होते हैं वह फिल्में ज्यादा अच्छी लगती हैं जिनके परदे ज्यादा गहरे होते हैं जिनकी कहानियों में कुछ दिखाने की अपेक्षा कुछ छिपाया ज्यादा जाता है।
छिपाना ही आकर्षक है, छिपाना ही उत्साहित करता है।
यह जीवन एक परदा है।
जीवन में हर काम भी एक परदा है और हर काम परदे में आनंद देता है। आम के पेड़ पर फल आने से पहले उसके,पत्ते,भौर, खुश्बू,सब अच्छे परदे हैं,जो आम के आने को आकर्षित करते हैं, उसकी महत्ता को प्रदर्शित करते हैं, हमें उत्साहित करते हैं, आम खाने का सुख तभी मिलता है जब आम के आने से पहले उसकी भूमिका में बहुत कुछ भिन्न भिन्न परदों को धीरे धीरे उठाया जाता है।
दुनिया की पहली पुस्तकें वेदों में जो भी वर्णित है वह छह,सात हजार सालों पहले कहा गया है लेकिन आज भी लोग उसे पूरा नहीं समझ पाते हैं और सबके समझने के अलग अलग स्तर हैं अलग अलग अर्थ समझते हैं लेकिन पूर्ण कोई समझ नहीं पाया और शायद यह पूर्ण हो भी नहीं पाएगा। वेदों को पूरा न समझ पाने में ही उनकी गहराई है, उनकी विशेषता है, उनकी सार्थकता है, क्योंकि यह परदा ही हमें उनमें रूचि पैदा करता है।
हमारी समझ पर भी परदे ही परदे हैं हमारी समझ को ढका गया है,इस पर परदे लटका रखे हैं, हम यह परदे खोलते रहते हैं और यह परदे हटाना ही समझ है, बुद्धिमत्ता को प्रदर्शित करता है,जीवन भर हम अपनी समझ से परदे हटाते रहते हैं और आगे बढ़ते रहते हैं।
प्रेम में जब तक परदा है, तब तक आकर्षण है, आनंद है, आप जिसे पसंद करते हैं हर रोज़ उसको देखने में, मिलने में, इंतजार करने में,वो क्या सोचते होंगे, ऐसे कहना चाहिए, नहीं वैसे कहना है,यह कपड़े ठीक हैं,उसको सोच सोचकर तैयार होना, रास्ता तय करना,यह सब आनंदित करता है लेकिन य़दि दो शब्द बोलकर बात पूरी कर दी तो परदा गायब और फिर वह सारा आनंद छू मंतर, उसके बाद पुरानी बातों को याद करके ही आनंद लिया जा सकता है।
इस तरह यह परदे हमें जीवन जीने को प्रेरित करते हैं और हमें कभी जीवन से निराश नहीं होने देते, अगर यह परदे न होते तो जीवन निराशा भरा होता और बहुत जल्द अपनी सार्थकता को समाप्त कर लेता,यह परदे ही जीवन को सार्थक बनाते हैं।
जो दृश्य पहली बार देखा जाता है वह बेहद खूबसूरत व आकृषक होता है,वह दृश्य फिर हमें और आगे देखने को प्रेरित करता है,वह हमें लालायित करता है कुछ और देखने को, कुछ और करने को, कुछ और सोचने को।
हम जीवन भर परदों को खोलते रहते हैं यही जीवन है,इसी में आनंद है।
दृश्यों को ऊपरी सतह से देखना व दृश्यों के अंदर जाकर देखना,दो अलग अलग आयाम होते हैं, दृश्य को समझने के लिए उसके पार देखना जरूरी है, उसके भीतर से समझ को गुजारना होता है। किसी भी नये यंत्र को बनाने से लेकर, भिन्न सोचने, डॉक्टरी इलाज करने, आसमान में चांद या मंगल तक पहुंचने में हमें समझ को गुजारना होता है। समझ के ताले खोलने जैसा ही है।
कहने का अर्थ है कि परदों से जीवन का आनंद है, व्यापकता है, सुंदरता है।
सूबे सिंह सुजान, कुरूक्षेत्र, हरियाणा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें