सोमवार, 11 नवंबर 2019

ग़ज़ल :- ज़िन्दगी आज लघुकथा हो गई ।

एक पुरानी ग़ज़ल , नये दोस्तों के नाम । ग़ज़ल आदमी की ये क्या दशा हो गई ज़िन्दगी आज लघुकथा हो गई । अब वो खुशियाँ कहाँ से आयेंगी, सब ग़मों में जो एकता हो गई । इस तरह टूटते रहे हैं पहाड़, जैसे शिमला भी कालका हो गई । थोड़ी महँगाई कम हुई थी बस, फिर चुनावों की घोषणा हो गई । सारे किरदार ही बदल गये हैं , आत्मा, दुष्ट आत्मा हो गई । मैं हँसा था,वो मर मिटा मुझ पर, मुस्कुराहट भी हादसा हो गई । पाप से बचने के लिए देखो, भूल भी एक रास्ता हो गई । ©सूबे सिंह सुजान

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