शुक्रवार, 22 जून 2018

ग़ज़ल -ठीक ठाक तो हो

तन्हा से छत पे बैठे हो, ठीक ठाक तो हो ?
क्या बात?खुद से लड़ते हो ठीक ठाक तो हो?

जगजीत सिंह को सुनते हो ,ठीक ठाक तो हो ?
ग़ालिब के शेर पढ़ते हो ठीक ठाक तो हो?

क्यों खुद ही हँसने लगते हो ठीक ठाक तो हो ?
बिन बात रोने लगते हो ठीक ठाक तो हो ?

दुनिया की बातें करना,दुनिया की बातें सुनना,
तुम किससे बात करते हो ठीक ठाक तो हो?

सुजान $μj@n

4 टिप्‍पणियां:

  1. सभी स्थितियां मन की उदासी को इंगित करती हैं |ठीक कैसे हो सकता है कोई ये सब करने वाला ? अच्छी गजल आदरणीय |

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी संवेदना ग्राहया है ।
      आपके विचारों पर गहन अनुभूति रखता हूँ ।
      धन्यवाद

      हटाएं
  2. सब कुछ खो कर अपनी दुनिया में ठीक ठाक रहना कोई हंसी खेल नहीं होता, फिर भी इसके बावजूद जो ठीक ठाक है, उसे मेरा सलाम

    जवाब देंहटाएं
  3. व्याकुल पथिक,जी आपकी संवेदना व टिप्पणी के लिये आभार

    जवाब देंहटाएं