मंगलवार, 5 जून 2018

ग़ज़ल के महान सितारा कृष्ण बिहारी नूर साहब की एक उत्कृष्ट ग़ज़ल पेश है

ज़िन्दगी से बड़ी सज़ा ही नहीं
और क्या जुर्म है पता ही नहीं

इतने हिस्सों में बँट गया हूँ मैं 
मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं ।

ज़िन्दगी मौत तेरी मंज़िल है
दूसरा कोई रास्ता ही नहीं ।

सच घटे या बढ़े,तो सच न रहे
झूठ की कोई इन्तिहा ही नहीं ।


जिसके कारण फ़साद होते हैं
उसका कोई अता -पता ही नहीं ।

कैसे अवतार,कैसे पैग़म्बर,
ऐसा लगता है अब ख़ुदा ही नहीं ।


अपनी रचनाओं में वो ज़िन्दा है
'नूर' संसार से गया ही नहीं ।


कृष्ण बिहारी 'नूर'

1 टिप्पणी:

  1. कैसे अवतार,कैसे पैग़म्बर,
    ऐसा लगता है अब ख़ुदा ही नहीं ।----------
    बहुत अच्छी गजल सुजान जी | शेयर करने के लिए आभार |

    जवाब देंहटाएं