शुक्रवार, 16 मार्च 2018

आओ बदलें मुशायरों से माहौल व समाज को दें सही दिशा

हमारे अभी कुछ पुराने समय में , ज्यादा दिनों की बात नहीं है हमारे शहरों कुरूक्षेत्र,अम्बाला,पानीपत हिसार और उधर पंजाब के साथ साथ पूरे देश में भी बहुत ऐसे शहर रहे हैं जहाँ साहित्य क्षेत्र में बहुत नामी काम होता रहा था
इन शहरों की  जमीन ने बहुत अच्छे शायर,लेखक,कलाकार,गायक दिये हैं ।
क्या हमें नहीं लगता कि इन शहरों ,देश में पुनः साहित्यिक गतिविधियों का परचम लहराये व समाज को विचारक बनाया जाए न कि वाजिब बात पर भी मखौल किया जाए ।

वरना आजकल के दौर में कवि सम्मेलन में बाज़ लोग चुटकले सुनाकर शायर कहलाते हैं और मोटी रकम ले उड़ते हैं वे गिरोह के रूप में काम करते हैं जबकि हमारे शुद्ध साहित्यिक लोग पाई पाई को तरसते रहते हैं ।

तो आइये आगे बढ़कर बनाइये अच्छा माहौल ।
बच्चों को नशे के बढ़ते कारोबार से बचाकर कविता,ग़ज़ल,कहानियों की तरफ ले चलें ।

इधर कुरूक्षेत्र में अदबी संगम कुरूक्षेत्र पिछले 40 बरसों से साहित्यिक गतिविधियों में काम करता आ रहा है अनेकों शायर,कवि लेखक,कलाकार इस माहौल ने पैदा किए अदबी संगम समाज की चहल पहल से,चकाचौंध से दूर रहकर अपनी हाथी की मदमस्त चाल से चलता रहा न किसी सरकारी मदद का मोहताज रहा न कभी किसी सरकारी अधिकारी, अकादमी ने वाजिब मदद दी बस कवि लोग स्वयं का खर्च करते रहे और साहित्य को रचते रहे,लगातार संगोष्ठी करते रहे ।
 इस संस्था की जड़ों को रोपने व वृक्ष बनाकर फलों तक लाने की फेहरिस्त में कुछ चुनिंदा नाम ध्यान में आते हैं जैसे कृष्ण चंद्र पागल, दोस्त भारद्वाज,डॉ एस पी शर्मा "तफ़्ता " "ज़ारी " डॉ हिम्मत सिंह सिन्हा "नाज़िम " डॉ के के ऋषि, डॉ दिनेश दधीचि, बाल कृष्ण बेज़ार, कस्तूरी लाल शाद,डॉ बृजेश कठिल , डॉ लुंकड़,आदि अनेकों नाम हैं

2 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय सूबे सिंह जी -- बहुत अच्छा लगा अदबी संगम के बारे में जानकर | सादर आभार --

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  2. आभार रेणु जी ।
    बहुत बहुत धन्यवाद आपकी सकारात्मक टिप्पणी पर

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