शुक्रवार, 28 मार्च 2014

हरियाणा की राजनीति देश से अलग तरह का अपना अक्खड अंदाज रखती है।

भारत संघ के केन्द्रीय चुनावों की घोषणा हो चुकी है। सभी दलों ने पूरजोर कोशिशें शुरू कर दी हैं। लेकिन हरियाणा की राजनीति की अपनी ही पहचान होती है। यहां के लोग जिस अक्खड व मौजी स्वभाव के होते हैं वैसी ही स्वभाव की इनकी राजनीति भी होती है। हालांकि इस बार चुनाव आयोग की सक्रियता काफी उत्साहजनक यहां भी नज़र आ रही है। सभी दलों के नेताओं को अपने अन्धाधुंध खर्चों से मरहूम रहना पड रहा है, साथ ही वे सोच सकते हैं कि यह उनके लिये भी अच्छा है और देश व जनता के लिये भी बहुत मददगार होगा। यह तथ्य नेताओं को समझना ही चाहिये।

            इधर  हरियाणा में कांग्रेस को बहुत कम लोग पसंद करते आये हैं लेकिन कांग्रेस फिर भी अपना शासन 10 साल से चला पाई है क्योंकि कांग्रेस बहुत चालबाजी करने व जनता को बाँटने में अंग्रेजों के समय से माहिर है। वास्तविकता में कांग्रेस का बहुमत नही है। यंहा पर इनेलो को ही देशी दल के रूप में देखा जाता रहा है। यह देशी दल अपनी पैठ गाँवों के घरों में बनाये रखता है और बहुत ही उबली हल्दी का पक्का रंग चढाये रखता है। लेकिन इस बार यहाँ भी मोदी की लहर है राष्ट्रीयता के लिये, क्योंकि हरियाणा के लोग हमेशा देशहित में भाजपा को ही प्रमुखता से रखते हैं और इसका भी कारण इनेलो ही है। क्योंकि इनेलो अधिकतर भजपा के साथ गठबंधन के साथ आती रही है और दूसरा पक्ष देखें तो कह सकते हैं कि इनेलो , भाजपा से अपना फायदा उठाने में हमेशा सक्षम भी रही है इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुये इस बार भाजपा की शीर्ष टीम ने हरियाणा के भाजपा के क्षेत्रीय कार्यकर्ता की सुनी और इनेलो से हमेशा आशातीत समझौता वास्तविकता का रूप नहीं ले सका।

                                  आजकल हर गाँव के नुक्कड,गली,घर में चुनावों की चर्चा जोरों पर है। कि ये टिकट सही है,ये गलत,ये उम्मीदवार जायज,ये नाजायज, ये बाहरी, ये घोटालेबाज,ये साफ छवि का आदि-आदि। इसके साथ ही अंत में एक बात सभी कहते हैं कि इस बार एक मौका तो मोदी को ही देना चाहिये। और इस तरह भजपा का पलडा बिन वोट मांगे ही भारी हो जाता है ।दूसरा पक्ष इस बार के चुनावों में साफ तौर पर सोशल मीडिया का भी साफ झलकता है। नये वोटर सोशल मीडिया के प्रभाव में ही वोट करेंगे। मेरे अनुमान में ये नये वोटर अपने विवेक से ही वोट देंगे और राष्ट्रीयता को प्रमुखता से देखेंगे। यह लेख भी अनुमानों के आधार पर समीक्षा परख है लेकिन जो चर्चायें होती हैं वही वास्तविकता का रूप लेकर सामने आती हैं वही भविष्यवाणियों का आधार बनती है।  

                      सूबे सिंह सुजान

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