अपनी ही हरारत से है अनजान अभी तक।
इनसान नहीं बन सका इनसान अभी तक।।
जिन्दा हैं मेरे प्यार के अरमान अभी तक।
आया नहीं उनका कोई फरमान अभी तक।।
हमने ही समस्याऐं खडी की हैं जमीं पर,
और ढूंढ नहीं पाये समाधान अभी तक।
इक पेड की चीखों से ये माहौल बना है,
दहशत में ही खामोश है मैदान अभी तक।
-सूबे सिहं सुजान
इनसान नहीं बन सका इनसान अभी तक।।
जिन्दा हैं मेरे प्यार के अरमान अभी तक।
आया नहीं उनका कोई फरमान अभी तक।।
हमने ही समस्याऐं खडी की हैं जमीं पर,
और ढूंढ नहीं पाये समाधान अभी तक।
इक पेड की चीखों से ये माहौल बना है,
दहशत में ही खामोश है मैदान अभी तक।
-सूबे सिहं सुजान
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