मंगलवार, 19 सितंबर 2023

नज़्म - यह सड़क भी, सड़क नहीं तुम हो।


 नज़्म- यह सड़क भी, सड़क नहीं तुम हो।


तुमसे मिलने के सब बहानों को,

मैंने सड़कों पे रख दिया तन्हा।

हर मुलाकात उस सड़क से है,

देखा था, जिसपे तुमको चलते हुए,

जबकि यह बन गई अनेकों बार,

कितने ढाबे, दुकानें और शोरूम,

खुल गए हैं किनारे बेतरतीब,

और साईन बोर्ड रख दिए हैं

लोगों ने इस सड़क के बीचों-बीच,

पेड़ काटे, दुकानों की खातिर,

बिछ गए जाल,तारों खंभों से,

आज जब मैं गुजरता हूँ यहां से,

मैंने बस स्टॉप की तरफ देखा,

जिसके नीचे मैं देखता था तुम्हें,

कितना जर्जर,दबा हुआ सा है

तुम नहीं आते अब इधर शायद!

हाँ मगर बावजूद इसके भी,

यह सड़क इतनी खूबसूरत है

जो मुझे देख मुस्कुराती है

और फ़िदा हूँ मैं,आज तक इस पर,

यह सड़क भी, सड़क नहीं तुम हो।

!

सूबे सिंह सुजान




शुक्रवार, 1 सितंबर 2023

आ गई गालियां मेरे हिस्से

 क्योंकि ईमान दोस्त है मेरा,

आ गई गालियां मेरे हिस्से।

शेर अच्छे रक़ीब कहते हैं,

आती हैं तालियां मेरे हिस्से।


सूबे सिंह सुजान

कुरूक्षेत्र